poetry /2020 /

देख अकेली उसको 

वो कुत्ते बन कर टूट पड़े 

कुछ समझ पाती उससे पहले वो उसकी आबरू लूट गए 

देख भेड़ियों जैसे उनको 

उसके सांस जैसे छूट गए 

बचपन से जो देखे उसने 

उसके वो सपने पल भर में ही टूट गए 

खून से लथपथ, बिलखती हुई वो 

भैया भैया कह रही थी 

पर रहम ना किया उन दरिंदों ने 

उनकी तो बुद्धि भ्रष्ट हो रही थी 

ये कब तक चलता रहेगा 

ये मानव रूपी जानवर 

इस देवी रूपी स्त्री को 

कब तक नोचता रहेगा 

कब तक नोचता रहेगा

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